किले की जल-बुद्धि

मेहरानगढ़ किला ज़ाहिर तौर पर जोधपुर का सबसे पुराना और पहला औपचारिक निवास स्थान था और आज तक, यह अपने ऐतिहासिक जल संरक्षण प्रणाली के माध्यम से एकत्रित वर्षा जल का उपयोग करता है। यह ऐतिहासिक जल संरक्षण प्रणाली एक तरह की स्थानीय प्रणाली है जिसने पाँच सौ साल पहले प्राकृतिक परिदृश्य और विशाल वास्तुशिल्प को आपस में जोड़ते हुए मेहरानगढ़ की जलापूर्ति सुनिश्चित की। प्रस्तुत गद्य में वर्चुअल टूर के माध्यम से जलग्रहण क्षेत्र से जलपात्र तक किले में पानी के सफर को देखने के लिए हम आपका स्वागत करते हैं।

सन्दर्भ

पग पंगल धड़ मेढ़ते, बाहियें बायड़मेर
भुलो चुको जोधपुर, थावो जैसलमेर

(मेरे) पाँव पूगल में, धड़ मेढता में, कंधे बाड़मेर में हैं, जब मैं रास्ता भूल जाऊं, तो आप मुझे जोधपुर में भी ढूंढ सकते हैं, लेकिन मैं वास्तव में जैसलमेर में रहता हूँ।' यह वाक्यांश थार रेगिस्तान के भूगोल और थार रेगिस्तान के एक छोर पर मौजूद जोधपुर के भौगोलिक स्थिति की व्याख्या करता है। रेगिस्तान के एक शहर के बारे में सोचते हुए इसकी जलव्यवस्था के बारे में सोचना सहज ही है, खासकर तब जब भारत के इन हिस्सों में ८०-९०% वर्षा वर्ष के कुछ महीनों के भीतर ही हो जाती है। यह परिस्थिति शेष वर्ष के लिए वर्षा जल के संरक्षण की आवश्यकता पैदा करती है। इसलिए मेहरानगढ़ किले के संस्थापक राव जोधा के लिए किले की स्थापना करते समय जल संचयन के बारे में सोचना महत्वपूर्ण था।

पंद्रहवीं शताब्दी में, राव जोधा ने मेहरानगढ़ के निर्माण के लिए पचेतिया हिल को चुना क्योंकि यह सुरक्षा की दृष्टि से आदर्श था और पहाड़ी के चट्टानी इलाके से तत्कालीन जलप्रपात भी प्रस्तुत था। लोकमत के अनुसार यह झरना संत चिड़िया नाथ जी की साधना स्थली थी और उन्होंने राव जोधा को श्राप दिया कि अगर उन्होंने किले का निर्माण किया तो उनके राज्य में सूखे और अकाल की स्थिति होगी। इस प्रकार, मेहरानगढ़ किले में और उसके आसपास हर संभव तरीके से वर्षा जल के संरक्षण के लिए निर्णय और कदम उठाए गए। यह जल प्रणाली मेहरानगढ़ के निर्माण के प्रमुख पहलुओं में से एक है जिसने सदियों पहले किले की जरूरतों के लिए पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की थी जब यांत्रिक या विद्युत प्रौद्योगिकियां मौजूद नहीं थीं।

जहाँ ये सब शुरू हुआ

मेहरानगढ़ किले के आंतरिक भाग में प्रमुख जल निकाय / स्थल चिड़िया नाथ जी का टाँका / हौज़ है। यह चिड़िया नाथ जी के आश्रम के पास है, जो ऐतिहासिक रूप से संत चिड़िया नाथ जी की ध्यान स्थली थी। इस हौज़ के लिए पानी का मुख्य स्रोत बारिश का पानी था जो मेहरानगढ़ किले के चट्टानी अग्रभाग से झरने के रूप में नीचे आता था और फिर छोटे चैनल के माध्यम से चट्टानी अग्रभाग के समानांतर चलता था। इसलिए यह मेहरानगढ़ और जोधपुर ऐतिहासिक शहर की ऐतिहासिक उत्पत्ति से जुड़ा हुआ है।

मेहरानगढ़ और जसवंत थड़ा के प्रवेश द्वार पर क्रमशः रसोलाई कुंड और देव कुंड के नाम से प्रसिद्द अन्य कुंड थे, जो परिसर के पहाड़ी क्षेत्रों से बारिश के पानी को एकत्र करते थे और उनके आस-पास रहने वाले लोगों के लिए पानी के स्रोत के रूप में कार्य करते थे।

चिड़ियानाथजी के हौज़ में एकत्रित जल।

मेहरानगढ़ किले की जल प्रणाली की प्रमुख विशेषताएं

पहाड़ी, इसके चट्टानी इलाके और प्राकृतिक ढाल पानी को प्राकृतिक रूप से एक जलग्रहण क्षेत्र से दूसरे जलग्रहण क्षेत्र में प्रवाहित होने देते हैं जिससे पानी विभिन्न जल निकायों और स्थानों तक पहुँचता है। फिर पानी को इन जलग्रहण क्षेत्रों से बाहर निकाला जाता था और मैकेनिकल इंजीनियरिंग के माध्यम से अलग-अलग महलों में पहुँचाया जाता था जिसमें एक्वाडक्ट्स(छोटी, पतली नहरें) और फ़ारसी घिर्री और हाथ से पानी की खिंचाई के साधन शामिल थे। किले के परिदृश्य और वास्तुकला के साथ एकीकृत इन विचारों ने पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की। यह जल प्रणाली पाँच शताब्दी से भी अधिक पुरानी है, हालाँकि आज भी जब मानसून के मौसम में भारी बारिश होती है, तो परिदृश्य जीवंत हो उठता है और पानी ऐतिहासिक रास्तों से होकर किले के जलाशय की ओर बहता है।

धोबी कुंड

जलग्रहण क्षेत्र

मेहरानगढ़ के आसपास की ये घाटियाँ इसकी शानदार जल प्रबंधन प्रणाली के जलग्रहण क्षेत्र के रूप में काम करती हैं। धोबी कुंड जलग्रहण क्षेत्र शहर के उत्तर-पूर्व में विभिन्न पहाड़ियों के बीच में फैला हुआ है और दक्षिणी दिशा में रानीसर के साथ-साथ पश्चिमी दिशा में सूरसागर के जलग्रहण क्षेत्र को फैलाता है। जलग्रहण लाल बलुआ पत्थर की चट्टानों पर फैला है। मानसून के दौरान, पानी की धाराएँ इस इलाके में शिराओं की तरह एक सँकरे हिस्से की ओर बहती हैं।

धोबी कुंड के जलग्रहण क्षेत्र में जमा हुआ बारिश का पानी

हाथी नहर

चट्टानों को काटकर बनाई गई नहर जो जल प्रवाह को निर्देशित करती है

हाथी नहर एक लंबी वर्षाजल नाली है जो जलग्रहण क्षेत्र को रानीसर झील से जोड़ने वाले चैनल के रूप में कार्य करती है, जो जोधपुर की जल प्रबंधन प्रणाली का एक प्रमुख हिस्सा है। यह नहर उभरे चट्टानी हिस्से की ओर चौड़ी हो जाती है। यहाँ बहता पानी चलना सीखता है। रानीसर झील में आसानी से प्रवेश करने के लिए पानी की गति को नियंत्रित किया जाता है।

भारी बारिश के बाद हाथी नहर में बहता पानी

रानीसर झील में प्रवेश

बहते पानी का संचयन

हाथी नहर का पानी रानीसर में किले की दीवार के एक छिद्र से प्रवेश करता है। इस छिद्र से ठीक पहले चट्टानी इलाके में एक गड्ढा है जो पानी के भारी खनिजों को रोक लेता है और इस प्रकार प्राकृतिक रूप से छानने की प्रणाली के रूप में कार्य करता है। प्राकृतिक जलग्रहण क्षेत्र में स्थित रानीसर किसी भी हमलावर सेना के लिए एक सुलभ जलापूर्ति क्षेत्र था, इसलिए राव मालदेव जी ने इस दीवार का निर्माण रानीसर की पहुँच को रोकने के लिए किया। यहाँ हम तीन अलग-अलग प्रकार की चिनाई देख सकते हैं जो विभिन्न कालों में इसके निर्माण को दर्शाती हैं।

किले की दीवार जिससे पानी रानीसर झील में प्रवेश करता है

अरहट (फारसी घिर्री)

पानी खींचना

अरहट (फारसी घिर्री) एक यांत्रिक जल-खींचने वाला उपकरण है जो आमतौर पर बैलों, भैंसों या ऊंटों जैसे बोझ ढोने वाले जानवरों द्वारा संचालित होता है। इसका उपयोग जल स्रोतों जो कि आमतौर पर खुले कुएं होते हैं, से पानी खींचने के लिए किया जाता है । संस्कृत में, फारसी घिर्री के लिए प्राचीन ग्रंथों में अरघट्टा शब्द का उपयोग किया गया है जो अर घट्टा शब्दों के संयोजन से आता है 'अरा' जिसका अर्थ पहिये की तीलियाँ है और 'घट्टा' का अर्थ घड़ा होता है। १८४६ (वि. स. - १९०३) में महाराजा तखत सिंह जी ने रानीसर में एक बुर्ज का निर्माण करवाया, जिस पर पहली फारसी घिर्री लगाई गयी थी।

प्राचीन भारत में कुछ विशिष्ट किले एक पहाड़ी या चट्टानी गढ़ पर स्थित थे जहाँ जल संचयन आम था और किले के शीर्ष तक कई चरणों के माध्यम से नीचे की झीलों से पानी उठाने के लिए फारसी पहिये स्थापित किये गए थे। मेहरानगढ़ एक उदाहरण है जहाँ फारसी पहिये या घिर्री का उपयोग कुओं से और जलाशयों से पानी प्राप्त करने के लिए किया जाता था

रानीसर के आधार स्तर के नीचे ५ छोटे कुएँ हैं जिन्हें कुइयाँ कहा जाता है। ये कुएँ ज़मीन में गहरे स्थित जलस्त्रोतों से जुड़े हुए हैं और इन का उपयोग तब किया जाता था जब गर्मी के कारण रानीसर का पानी अपर्याप्त होता था।

रानीसर, किले के अंदर झील

एक्वीडक्टस और टैंक

पानी का परिवहन और भंडारण

फ़ारसी रहट के माध्यम से पानी खींचा जाता था और रानीसर से किले में विभिन्न स्तरों पर पानी लाया जाता था। ऊचाईं पर पानी लाने के लिए इस प्रणाली में एक बड़े पहिये के चारो और बाल्टियों की माला बनायीं जाती थी; और लम्बाई यानी समतल सतह पर पानी ले छोटी नालियाँ ज़मीन के ढलान के अनुरूप बनायीं जाती थीं जो पास के खुले टाँकों में पानी ले जातीं थीं। पानी या तो इन टाँकों से सीधा उपयोग हेतु ले लिया जाता था अथवा रहट द्वारा अन्य उच्चतर स्थलों पर ले जाया जाता था।

रहट, चोकेलाओ कुएं के समूह के बगल में ऊपर दिखाई देने वाली छोटी नहरे (एक्विडक्ट) और टैंक।

किले में पीने का पानी

पानी का भंडारण और सेवन

उन्नीसवीं शताब्दी से पहले, फारसी व्हील सिस्टम (रहट प्रणाली) के आने तक और अंत में पानी की पाइपलाइनों के आने तक रानीसर से पानी मानवी श्रम से लाया और ले जाया जाता था। उस समय बड़े-बड़े बर्तनों में पानी रखा जाता था। किले के अभिलेखों से पता चलता है कि महेरियन के रूप में पहचानी जाने वाली महिलाओं के समूह को मटकों/घड़ों का उपयोग करके किले में सभी जगहों पर पानी ले जाने का काम विशेष रूप से सौंपा गया था। आगंतुकों और मेहमानों को पानी पिलाने के लिए राजस्थान के घरों के प्रवेश द्वार के पास हमेशा पीने के पानी के बर्तन रखे जाते हैं, जिसे मेहमाननवाज़ी का संकेत माना जाता है और एक स्वागत की परंपरा है। इस ही परम्परानुरूप किले में भी विभिन्न पोलों के पास पीने के पानी से भरे विशाल बर्तन रखे गए थे जिनसे किले के आगंतुकों को पानी पिलाया जाता था।

लोहा पोल पर स्थापित पानी के बर्तन
लोहा पोल पर स्थापित पानी के बर्तन
बर्तन की खरीद का अभिलेखीय रिकॉर्ड; बर्तन पर छाप बताते हैं कि यह अहमदाबाद में १७८८ में बनाया गया था।

जुड़ी हुयी झीलें

जल स्रोतों को सुलभ बनाना

जोधपुर किले की नींव रखने के ठीक एक साल बाद, राव जोधा की सबसे वरिष्ठ महारानी जसमदे हादी जी ने ऐतिहासिक रानीसर का निर्माण शुरू किया। पदमसर को राव मालदेव के समय में रानी उत्तमदे सिसोदिनी जी द्वारा रानीसर की निकटवर्ती घाटी में बनाया गया था। हालाँकि कुछ लोगों का मानना है की यह नगरसेठ पदम सेठ द्वारा बनवाया गया था। रानीसर की पाल की दीवार में रानीसर के जल स्तर को देखते हुए पदमसर की ओर एक निकास प्रदान किया गया था ताकि रानीसर के जलप्लावन की स्थिति में अतिरिक्त जल पदमसर को जा सके।

मेहरानगढ़ किले की दीवार के दोनों और दिखाई देने वाली दो जुड़ी हुई झीलें

आधुनिक काल

पारंपरिक जल प्रबंधन प्रणाली १८९७ में अंग्रेजों द्वारा सार्वजनिक जल प्रणाली की शुरुआत तक जारी रही। यह पानी की आपूर्ति को केंद्रीकृत करने और विकास की असंवेदनशील शुरुआत थी, खासकर जोधपुर के भारतीय गणराज्य में विलय के बाद। आज, जोधपुर इंदिरा गांधी नहर से बाहरी जल आपूर्ति पर बहुत अधिक निर्भर है, जो पंजाब के भाखड़ा नंगल बाँध से पानी लाती है।

प्रतिभागी कलाकार : इलस्ट्रेशन - श्रेया राजमाने और रोशनी पाटिल। एनिमेशन (जल झरोखा वर्कशॉप दिसंबर २०२१ पार्टिसिपेंट) - आशना शाह। पैनोरामिक फोटोग्राफी - सौम्या पारिख द्वारा भवानी बेगड़ के साथ।