लोक-कोष

राव जोधा ने पचेतिया पहाड़ी पर जोधपुर की स्थापना की क्योंकि इस क्षेत्र में वर्षा जल संचयन और संग्रह की अपार संभावनाएं थीं और चट्टानों के बीच पानी के झरने वर्षपर्यंत बहते थे। यह पाँच सौ साल पहले खोजी गई प्रणाली अभी भी कार्यशील है और कई स्थानों पर लोगों को उपयोग करने योग्य पानी प्रदान कर रही है।

पुराने शहर में पानी

बड़े जलग्रहण क्षेत्रों में वर्षा जल के माध्यम से एकत्र किया गया पानी जमीन में रिसता है और चट्टान की प्रकृति के कारण, यह प्राकृतिक रास्ते बनाते हुए दरारों से होकर जाता है। जोधपुर ऐतिहासिक नगरी में बावडी, झालरा, बेरा, कुण्ड जैसी जल संरचनाएँ इन्हीं प्राकृतिक मार्गों पर बनी हैं। जोधपुर में पानी की व्यवस्था प्राकृतिक रिसाव, अंतःस्रवण और चट्टानों में पानी को रोककर रखने की क्षमता पर निर्भर करती है। पहाड़ियों और ऊंचे क्षेत्रों से पानी जलाशयों में और फिर आगे शहर की ओर प्राकृतिक ढाल के कारण बहता है । जोधपुर इस प्रकार की अनुक्रमिक व्यवस्था पर विकसित हुआ । यही कारण है कि जोधपुर में जलनिकायों का एक आपस में जुड़ा समूह देखा जा सकता है ।

 

पदमसर से नवचोकिया तक की सड़क

परकोटों से बंधे ऐतिहासिक शहर को मेहरानगढ़ किले से जोड़ने वाले प्रवेश द्वार के बगल में दो झीलें हैं। रानीसर किले के उपयोग के लिए आरक्षित थी और पदमसर सार्वजनिक उपयोग के लिए खुली थी। किले के इस प्रवेश द्वार को नगरकोट से जोड़ने वाली सड़क पहाड़ी इलाके पर है जो मेहरानगढ़ की तलहटी तक आती है । इस पहाड़ी इलाके की उपस्थिति के कारण, इस रहवासी इलाके में प्राकृतिक ढाल है जिससे पानी का प्रवाह सक्षम हो पता है। पुराने शहर की जल विरासत के दृष्टिकोण से इस सड़क पर नगरकोट की सबसे पुरानी जल निकायों एवं संरचनाओं की एक श्रृंखला को देखा जा सकता है, जिसे या तो तत्कालीन राजाओं / रानियों या समुदायप्रमुख के नामों से जाना जाता है।

Street from Padamsar to Navchokiya
१. जैता बेरा और चांदबावड़ी को मेहरानगढ़ किले से सटे पुराने शहर के हिस्से के रूप में दर्शाया गया है, जैसा कि मेहरानगढ़ संग्रहालय ट्रस्ट के अभिलेखागार से एक पारंपरिक पेंटिंग में दीखता है ।
२. पदमसर से नवचौकिया बेरा तक सड़क के विहंगम दृश्य को दर्शाने वाला Google earth का एक स्क्रीनशॉट

पदमसर झील

पदमसर जो निकटवर्ती रानीसर से जुड़ा है जोधपुर के पुराने शहर का दूसरा सबसे प्रमुख जल निकाय है। इसके निर्माण को अलग-अलग चरणों में अलग-अलग संरक्षकों द्वारा स्वीकृत किया गया था, जिनमें प्रमुख थीं, मेवाड़ के पदम शाह की पत्नी रानी उतमदे और राव गंगा की पत्नी रानी देववाड़ी जी। रानीसर की जलप्लावन की स्थति में जल के उच्चतम स्तर पर पदमसर की ओर एक निकास है पदमसर के पानी के मुख्य स्रोत के रूप में काम करता है। जब पदमसर भर जाता है तो तटबंध के ऊपर से लबालब पानी बहता है और फिर सीधे शहर से होकर जाता है।

पदमसर में रानीसर के प्लावन की स्थिति में जलप्रवाह की उपरोक्त व्यवस्था राव मालदेव के समय में तत्कालीन अभियांत्रिकी के अनुरूप निर्मित की गई थी जो अभी भी जारी है।

पदमसर जल निकाय, इसके घाट और निकटवर्ती मंदिर। भवानी बेगड़ द्वारा फोटो
पदमसर में किया जा रहा तर्पण समारोह। भवानी बेगड़ द्वारा फोटो
पदमसर में किया जा रहा तर्पण समारोह। भवानी बेगड़ द्वारा फोटो
वर्षपर्यंत साधारण दिनों की तुलना में तर्पण और दिवाली के दौरान पदमसर झील का परिवेश कैसे बदलता है, इसका कलात्मक प्रतिनिधित्व। जल झरोखा वर्कशॉप 2021 प्रतिभागियों मधु यामिनी, दिविशा श्रीवास्तव और शेफाली कटारिया द्वारा विजुअलाइजेशन।
वर्षपर्यंत साधारण दिनों की तुलना में तर्पण और दिवाली के दौरान पदमसर झील का परिवेश कैसे बदलता है, इसका कलात्मक प्रतिनिधित्व। जल झरोखा वर्कशॉप 2021 प्रतिभागियों मधु यामिनी, दिविशा श्रीवास्तव और शेफाली कटारिया द्वारा विजुअलाइजेशन।
वर्षपर्यंत साधारण दिनों की तुलना में तर्पण और दिवाली के दौरान पदमसर झील का परिवेश कैसे बदलता है, इसका कलात्मक प्रतिनिधित्व। जल झरोखा वर्कशॉप 2021 प्रतिभागियों मधु यामिनी, दिविशा श्रीवास्तव और शेफाली कटारिया द्वारा विजुअलाइजेशन।

जैता बेरा

जैता बेरा (कुऑं ) फतेह पोल और कोतवाली के बीच स्थित है। इसका निर्माण मुथा जेता ने राव जोधा जी के शासनकाल में करवाया था। जैता बेरा को राजकीय बेरा (रॉयल वेल) के नाम से भी जाना जाता है। इस कुएं के पानी को ऐतिहासिक रूप से औषधीय गुणों वाला माना जाता है। इस कारण यहाँ से जल विग्रह सीधे मेहरानगढ़ किले द्वारा उनके किलेदार (किले के प्रमुख रक्षक) या कोतवाल (क्षेत्रीय पुलिस अधिकारी) द्वारा नियंत्रित किया जाता था। यदि कोई व्यक्ति किसी औषधीय उपयोग हेतु से या किसी धार्मिक उद्देश्य के लिए भी पानी का उपयोग करने का अनुरोध करता है, तो किलेदार की अनुमति से उस व्यक्ति को आवश्यक मात्रा में पानी उपलब्ध कराया जाता था। इस जल की महत्ता को ध्यान में रखते हुए जल संग्रह की रखवाली के लिए एक सिपाही सदैव ड्यूटी पर रहता था।

जैता बेरा से पानी लाता एक व्यक्ति। फोटो असलम सैय्यद जल झरोखा वर्कशॉप द्वारा दिसंबर २०२१
जैता बेरा से स्टेनलेस स्टील के घड़े (पानी के बर्तन) में अपने घर पानी ले जाता एक व्यक्ति। असलम सैय्यद जल झरोखा वर्कशॉप द्वारा फोटो दिसंबर २०२१
मेहरानगढ़ संग्रहालय ट्रस्ट के अभिलेखागार से जैता बेरा तक पहुँचने के लिए दिए गए परमिट का अभिलेखीय रिकॉर्ड

चांद बावड़ी

इसका निर्माण राव जोधा जी की रानी चाँद कंवर ने करवाया था। हालांकि यह आकार में बहुत छोटी है, लेकिन इसका बड़ा ऐतिहासिक महत्व है क्योंकि इसका निर्माण उसी युग में किया गया था जब किले का निर्माण शुरू किया गया था। प्राचीन समय में चाँद बावड़ी के चबूतरे पर एक मंदिर और एक वाचनालय हुआ करता था।

चांदबावड़ी ऐतिहासिक शहर जोधपुर में घनी आबादी में स्थित है। फोटो निहारिका पारीक द्वारा
गली से चांद बावड़ी का प्रवेश द्वार। भवानी बेगड़ द्वारा फोटो
पानी से भरी चांदबावड़ी का दृश्य। फोटो निहारिका पारीक द्वारा

सामुदायिक कुएँ

जल निकायों को भी विभिन्न समुदायों द्वारा बनवाया गया था। इस आपस में जुडी जलनिकायों की व्यवस्था ने घने बसे हुए नगर में पानी से जुडी सामुदायिक खुली जगहों की एक श्रृंखला को भी बनाया जो सार्वजनिक स्थानों की तरह भी उपयोगी हो सकी। इन कुओं पर, जो हर चौक में पाए जाते हैं, एक समुदाय के लोग इकठ्ठा होते थे जो साथ समय बिताते थे। यहाँ तक कि सबसे छोटे कुआ/बेरा/कुएं के साथ भी एक ओटला या सीढ़ियां, एक पेड़ और अक्सर एक स्थायी मंडप होता था जो उस स्थान को सार्वजनिक स्थान बनाता था। जानवरों के लिए अतिरिक्त प्लावित जल एकत्र किया जाता था, जो रोजमर्रा की जिंदगी में जानवरों से मजबूती से जुड़े समाज की सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है। पेड़ अक्सर पीपल का पेड़ होता था जिसका धार्मिक महत्व होता था। यहाँ प्रतिदिन प्राथनाए और पूजा होती हैं । यहाँ पक्षियों के लिए चबूतरे रखे गए होते थे। नवचोकिया बेरा के आसपास की जगह और गतिविधियों का एक कलात्मक अभिव्यक्ति । स्थानीय निवासी पीने, भंडारण और अनुष्ठानों के लिए पानी का उपयोग करते हुए चित्रित। स्थानीय निवासियों के अलावा, स्ट्रीट वेंडर, ऑटो रिक्शा चालक, दुकानदार और राहगीर भी कुएं से पानी पीते हैं। जल झरोखा वर्कशॉप दिसंबर २०२१ में साक्षी बोलिया, कविता सचवानी, अपर्णा वैदिक और दिग्विजय सिंह राठौड़ के इनपुट के साथ जल झरोखा वर्कशॉप दिसंबर २०२१ में प्रतिभागियों पायल गुप्ता द्वारा चित्रण।

जोशियों का बेरा। भवानी बेगड़ द्वारा फोटो
जोशियों का बेरा से पानी लाते हुए एक पास का निवासी। भवानी बेगड़ द्वारा फोटो
नवचौकिया बेरा जिसमें कई स्टॉल हैं, ऑटो रिक्शा स्टैंड और इसके आसपास सब्जी विक्रेता हैं। भवानी बेगड़ द्वारा फोटो
नवचौकिया बेरा एक ही समय में कई लोगों को पानी लाने की अनुमति देता है। भवानी बेगड़ की तस्वीर
नवचौकिया के पास कुएं से पानी भरते पंप। भवानी बेगड़ द्वारा लिया गया चित्र
नवचौकिया के पास पुराने शहर में कुछ घरों की आम जगह में एक कुऑं। भवानी बेगड़ द्वारा लिया गया चित्र

मटका: जीवन का चक्र

मटका भारत भर में सबसे अधिक पाए जाने वाले टेराकोटा पानी के बर्तनों / मृदभांडों के लिए एक स्थानीय शब्द है। वे स्थान जहाँ मटके रखे जाते हैं, राजस्थानी घरों के सबसे पवित्र स्थान हैं। राजस्थान में मटका रखने की जगह को परिंडा कहते हैं। परिंडे बर्तनों को रखने के लिए नीचे गोलाकार उभार के साथ दीवार में ताके या खुले हिस्से होते हैं। एक आवासीय स्थान में, ऐतिहासिक रूप से दो परिंडो का निर्माण किया जाता था, पहला राहगीरों के लिए, प्रवेश द्वार के पास और दूसरा परिवार के उपभोग के लिए रसोई घर के अंदर।

मटके की यात्रा एक दृश्य कथा है जो जोधपुर के पुराने शहर के स्थानों के भीतर कैद की गई है। यह मटके के साथ, एक कुम्हार के स्थान से एक विक्रेता की दुकान तक के संदर्भों के संक्रमण को प्रस्तुत करती है। इसके बाद मटके का उपयोग, उपयोग उपरांत नष्ट करने का कार्य और फिर एक अलग संदर्भ में पुनरुपयोग भी होता है। यह दृश्य कथा जल झरोखा कार्यशाला दिसंबर २०२१ के दौरान माया डोड, विजयादित्य सिंह राठौर, अंशुल सिंह द्वारा निर्मित की गई थी।

अग्नि: निर्माता, शुरुआत और अंत में। चित्र सौजन्य: विजयादित्य सिंह राठौर
वायु: दैनिक जीवन का पवित्र चक्र। चित्र सौजन्य: तारिणी कुमारी
भूमि : गर्भगृह। चित्र सौजन्य: विजयादित्य सिंह राठौर
जल : समुदाय की जीवन रेखा। चित्र सौजन्य: विजयादित्य सिंह राठौर
आकाश : शून्य का चिंतन। चित्र सौजन्य: विजयादित्य सिंह राठौर
अनंत: अनंत को धारण करना। राख से राख, धूल से धूल। चित्र सौजन्य: विजयादित्य सिंह राठौर
पुनर्उत्थान: द प्ले ऑफ एन आफ्टरलाइफ। चित्र सौजन्य: विजयादित्य सिंह राठौर

प्याऊ - सबके लिए पीने का पानी

प्याऊ पीने के पानी के लिए एक सामुदायिक केंद्र है, आमतौर पर यह पानी के बर्तनों या मटकों की स्थापना होती है। जल-सेवा या पानी पिलाना प्याऊ लगाने वाले को पुण्य देता है ऐसा माना जाता है और यह रेगिस्तान में एक बहुत लोकप्रिय प्रथा है। यह फोटो ज़ीन या चित्र-पत्रिका जल झरोखा वर्कशॉप २०२१ के दौरान प्राची सेकसरिया और तिशा जैन द्वारा निर्मित एक प्रायोगिक प्रिंट आधारित काम है। यह ज़ीन या चित्र-पत्रिका, लोगों और प्याऊ की तस्वीरें शहर के भूलभुलैया जैसे रास्तों से प्रेरित है जहाँ ये प्याऊ पाए जाते।

प्राची सेकसरिया द्वारा फोटो
प्राची सेकसरिया द्वारा फोटो
प्राची सेकसरिया द्वारा फोटो
प्राची सेकसरिया द्वारा फोटो
प्राची सेकसरिया द्वारा फोटो
प्राची सेकसरिया द्वारा फोटो

ऐतिहासिक शहर में पानी के आसपास बातचीत

पानी का ऐतिहासिक रूप से लोगों के साथ घनिष्ठ संबंध रहा है, खासकर रेगिस्तान में। दिसंबर २०२१ में जल झरोखा कार्यशाला के दौरान असलम सैय्यद और त्वरीता चौहान पुराने जोधपुर शहर में घूमे और सड़कों पर लोगों के साथ जल, जल विरासत, जल संरक्षण आदि के बारे में बातचीत की। उन्होंने लोगों के साथ अपनी बातचीत से मौखिक और दृश्य संकेतों को पकड़ा और संकलित किया और यह कहानी गढ़ी।