पुराने शहर में पानी
बड़े जलग्रहण क्षेत्रों में वर्षा जल के माध्यम से एकत्र किया गया पानी जमीन में रिसता है और चट्टान की प्रकृति के कारण, यह प्राकृतिक रास्ते बनाते हुए दरारों से होकर जाता है। जोधपुर ऐतिहासिक नगरी में बावडी, झालरा, बेरा, कुण्ड जैसी जल संरचनाएँ इन्हीं प्राकृतिक मार्गों पर बनी हैं। जोधपुर में पानी की व्यवस्था प्राकृतिक रिसाव, अंतःस्रवण और चट्टानों में पानी को रोककर रखने की क्षमता पर निर्भर करती है। पहाड़ियों और ऊंचे क्षेत्रों से पानी जलाशयों में और फिर आगे शहर की ओर प्राकृतिक ढाल के कारण बहता है । जोधपुर इस प्रकार की अनुक्रमिक व्यवस्था पर विकसित हुआ । यही कारण है कि जोधपुर में जलनिकायों का एक आपस में जुड़ा समूह देखा जा सकता है ।
पदमसर से नवचोकिया तक की सड़क
परकोटों से बंधे ऐतिहासिक शहर को मेहरानगढ़ किले से जोड़ने वाले प्रवेश द्वार के बगल में दो झीलें हैं। रानीसर किले के उपयोग के लिए आरक्षित थी और पदमसर सार्वजनिक उपयोग के लिए खुली थी। किले के इस प्रवेश द्वार को नगरकोट से जोड़ने वाली सड़क पहाड़ी इलाके पर है जो मेहरानगढ़ की तलहटी तक आती है । इस पहाड़ी इलाके की उपस्थिति के कारण, इस रहवासी इलाके में प्राकृतिक ढाल है जिससे पानी का प्रवाह सक्षम हो पता है। पुराने शहर की जल विरासत के दृष्टिकोण से इस सड़क पर नगरकोट की सबसे पुरानी जल निकायों एवं संरचनाओं की एक श्रृंखला को देखा जा सकता है, जिसे या तो तत्कालीन राजाओं / रानियों या समुदायप्रमुख के नामों से जाना जाता है।
१. जैता बेरा और चांदबावड़ी को मेहरानगढ़ किले से सटे पुराने शहर के हिस्से के रूप में दर्शाया गया है, जैसा कि मेहरानगढ़ संग्रहालय ट्रस्ट के अभिलेखागार से एक पारंपरिक पेंटिंग में दीखता है ।
२. पदमसर से नवचौकिया बेरा तक सड़क के विहंगम दृश्य को दर्शाने वाला Google earth का एक स्क्रीनशॉट
पदमसर झील
पदमसर जो निकटवर्ती रानीसर से जुड़ा है जोधपुर के पुराने शहर का दूसरा सबसे प्रमुख जल निकाय है। इसके निर्माण को अलग-अलग चरणों में अलग-अलग संरक्षकों द्वारा स्वीकृत किया गया था, जिनमें प्रमुख थीं, मेवाड़ के पदम शाह की पत्नी रानी उतमदे और राव गंगा की पत्नी रानी देववाड़ी जी। रानीसर की जलप्लावन की स्थति में जल के उच्चतम स्तर पर पदमसर की ओर एक निकास है पदमसर के पानी के मुख्य स्रोत के रूप में काम करता है। जब पदमसर भर जाता है तो तटबंध के ऊपर से लबालब पानी बहता है और फिर सीधे शहर से होकर जाता है।
पदमसर में रानीसर के प्लावन की स्थिति में जलप्रवाह की उपरोक्त व्यवस्था राव मालदेव के समय में तत्कालीन अभियांत्रिकी के अनुरूप निर्मित की गई थी जो अभी भी जारी है।
सामुदायिक कुएँ
जल निकायों को भी विभिन्न समुदायों द्वारा बनवाया गया था। इस आपस में जुडी जलनिकायों की व्यवस्था ने घने बसे हुए नगर में पानी से जुडी सामुदायिक खुली जगहों की एक श्रृंखला को भी बनाया जो सार्वजनिक स्थानों की तरह भी उपयोगी हो सकी। इन कुओं पर, जो हर चौक में पाए जाते हैं, एक समुदाय के लोग इकठ्ठा होते थे जो साथ समय बिताते थे। यहाँ तक कि सबसे छोटे कुआ/बेरा/कुएं के साथ भी एक ओटला या सीढ़ियां, एक पेड़ और अक्सर एक स्थायी मंडप होता था जो उस स्थान को सार्वजनिक स्थान बनाता था। जानवरों के लिए अतिरिक्त प्लावित जल एकत्र किया जाता था, जो रोजमर्रा की जिंदगी में जानवरों से मजबूती से जुड़े समाज की सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है। पेड़ अक्सर पीपल का पेड़ होता था जिसका धार्मिक महत्व होता था। यहाँ प्रतिदिन प्राथनाए और पूजा होती हैं । यहाँ पक्षियों के लिए चबूतरे रखे गए होते थे। नवचोकिया बेरा के आसपास की जगह और गतिविधियों का एक कलात्मक अभिव्यक्ति । स्थानीय निवासी पीने, भंडारण और अनुष्ठानों के लिए पानी का उपयोग करते हुए चित्रित। स्थानीय निवासियों के अलावा, स्ट्रीट वेंडर, ऑटो रिक्शा चालक, दुकानदार और राहगीर भी कुएं से पानी पीते हैं। जल झरोखा वर्कशॉप दिसंबर २०२१ में साक्षी बोलिया, कविता सचवानी, अपर्णा वैदिक और दिग्विजय सिंह राठौड़ के इनपुट के साथ जल झरोखा वर्कशॉप दिसंबर २०२१ में प्रतिभागियों पायल गुप्ता द्वारा चित्रण।
मटका: जीवन का चक्र
मटका भारत भर में सबसे अधिक पाए जाने वाले टेराकोटा पानी के बर्तनों / मृदभांडों के लिए एक स्थानीय शब्द है। वे स्थान जहाँ मटके रखे जाते हैं, राजस्थानी घरों के सबसे पवित्र स्थान हैं। राजस्थान में मटका रखने की जगह को परिंडा कहते हैं। परिंडे बर्तनों को रखने के लिए नीचे गोलाकार उभार के साथ दीवार में ताके या खुले हिस्से होते हैं। एक आवासीय स्थान में, ऐतिहासिक रूप से दो परिंडो का निर्माण किया जाता था, पहला राहगीरों के लिए, प्रवेश द्वार के पास और दूसरा परिवार के उपभोग के लिए रसोई घर के अंदर।
मटके की यात्रा एक दृश्य कथा है जो जोधपुर के पुराने शहर के स्थानों के भीतर कैद की गई है। यह मटके के साथ, एक कुम्हार के स्थान से एक विक्रेता की दुकान तक के संदर्भों के संक्रमण को प्रस्तुत करती है। इसके बाद मटके का उपयोग, उपयोग उपरांत नष्ट करने का कार्य और फिर एक अलग संदर्भ में पुनरुपयोग भी होता है। यह दृश्य कथा जल झरोखा कार्यशाला दिसंबर २०२१ के दौरान माया डोड, विजयादित्य सिंह राठौर, अंशुल सिंह द्वारा निर्मित की गई थी।