रंग और धुन की परंपरा

कला और संगीत में क्षण भर के लिए ही सही लेकिन एक अलग दुनिया बनाने की शक्ति होती है। ये अस्थायी दुनिया कलाकारों की असीम कल्पनाओं से आकार लेती है। उनकी अभिव्यक्तियाँ जो एक विशिष्ट मनोदशा पैदा करती हैं, हमें वास्तविक और काल्पनिक, हद और अनहद के बीच कहीं ले जाती हैं। जोधपुर में ऐसी कलात्मक प्रथाओं की समृद्ध परंपराएं हैं जो राजकीय संरक्षण और आम लोगों की सांस्कृतिक गतिविधियों द्वारा सदियों से फली-फूली हैं। यह कहानी पारंपरिक एवं लोक संगीत के अपार कोष और मिनिएचर चित्रों के कई उदाहरणों में से कुछ पर प्रकाश डालती है जो जोधपुर के कलात्मक इतिहास में पानी के पहलुओं को चिन्हित करते हैं।

कजली तीज (बड़ी तीज) के पर्व पर जोधपुर

सन १८३०-४० | कागज पर अपारदर्शी जल रंग और सोना | © मेहरानगढ़ संग्रहालय ट्रस्ट

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तीज के त्यौहार का सम्बन्ध मानसून से है और यह विशेष रूप से भारत के पश्चिमी और उत्तरी राज्यों में मनाया जाता है। यह त्योहार प्रकृति के उपहार, बादलों के आगमन और बारिश, हरियाली एवं पक्षियों और इन सब के साथ सामाजिक गतिविधियों, अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों का जश्न मनाता है। तीज, वर्षाकाल में आने वाला त्योहार मुख्य रूप से देवी पार्वती और भगवान शिव के मिलन को समर्पित है। तीज का अर्थ महीने का तीसरा दिन है जो हर महीने दो बार - अमावस्या और पूर्णिमा के बाद तीसरे दिन आता है। यद्यपि यहाँ वर्णित तीज का त्योहार पारंपरिक रूप से महिलाओं द्वारा श्रावण के महीने में मनाया जाता है। यहाँ प्रस्तुत चित्र में संगमरमर के मंडपों और हरे-भरे बगीचे के साथ काले, झूमते हुए मानसून के बादलों को दिखाया गया है। महाराजा मान सिंह (ऋ. १८०३ - ४३) अपने जनाने के साथ आनन्दित हैं। राजकीय दल दावत कर रहा है, झूले पर झूल रहा है, पासा (चौपर) और लुका-छिपी खेल रहा है। मोर परिदृश्य में यत्र-तत्र दिखाए गए हैं। कलाकार दाना ने महिलाओं को जोड़े में चित्रित किया है, जो मौसम के भाव को बढ़ाते हैं।

"झिर मीर बरसे..."

राजस्थान में विविधता भरे लोक संगीत की समृद्ध परंपरा है। पश्चिमी राजस्थानी लोक संगीत परंपरा सिंध, कच्छ और मेवाड़ के सीमावर्ती क्षेत्रों के साथ अपने संबंध साझा करती है। अक्सर गाने लंगा या मांगणियार समुदायों के लोगों के समूह द्वारा रचित और प्रस्तुत किए जाते हैं। गाने आलाप के साथ शुरू होते हैं और इसमें रावणहत्था, मोरचंग, खड़ताल, ढोलक, हारमोनियम आदि लोक वाद्ययंत्रों के साथ गायन शामिल होता है। ये गीत, रेगिस्तानी पारिस्थिकी के सन्दर्भ में मानसून, जल निकायों और प्रासंगिक त्योहारों के साथ विरह श्रृंगार पर केंद्रित होते हैं।

प्रस्तुत लोक गीत अज्ञात मूल का है जिसे इरफ़ान ख़ान (गायन), अनीश ख़ान (गायन), इंसाफ़ ख़ान (गायन), रहीश ख़ान (गायन), सादिक ख़ान (ढोलक) और इकलास ख़ान (सिंधी सारंगी) ने प्रस्तुत किया है। यह क्षेत्र के सांस्कृतिक भूगोल का प्रतिनिधित्व करने वाला एक लोक गीत है जहाँ बारिश को उत्सव की तरह मनाया जाता है और अक्सर इसकी तुलना रेगिस्तान में लोगों के जीवन के पवित्र सुखद क्षणों और घटनाओं से की जाती है।

इस गीत के अंतरे में पृथ्वी और वर्षा के देवता इंद्र को प्रेमियों के रूप में चित्रित किया गया है जहाँ पृथ्वी ने बादलों की चुनरी पहनी है। गीत में, गायिका को एक विवाहित महिला के रूप में माना गया है, जो अपने प्रेमी के विरह और मानसून की घटनाओं के दौरान उसे याद करती है। गीत में एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार का भी उल्लेख है- सावन की तीज जो शिव-पार्वती को समर्पित है, जिसे महिलाओं द्वारा पति की लंबी उम्र के मनाया जाता है । यह त्योहार मानसून के मौसम में आता है और इसमें अनिवार्य रूप से झूले, वर्षा की फुहारें और गीत-संगीत शामिल होता है।

जोधपुर के सूर सागर के बाग में स्थित महल में महाराजा मान सिंह और शाही जनाने की महिलाएं

सन १८२०-३० | कागज पर अपारदर्शी जल रंग और सोना | © मेहरानगढ़ संग्रहालय ट्रस्ट

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जोधपुर में मेहरानगढ़ के आसपास की पहाड़ियाँ हैं जो मानसून के पानी का जलग्रहण क्षेत्र है, यहाँ वर्षाजल छोटे और बड़े गड्ढों में एकत्रित होता है। इस क्षेत्र मध्यकालीन निवासियों ने इन गड्ढों को झीलों में परिवर्तित किया, जहाँ से जोधपुर नगरकोट के सैकड़ों बावड़ियों और झालरों में पानी लाया जाता था। पुराने शहर के हर मोहल्ले की अपनी बावड़ी होती थी। इसी प्रकार, जलग्रहण क्षेत्रों के पास राजकीय महल भी बनाए गए थे। जैसा कि हम पारम्परिक मिनिएचर चित्रों में देख सकते हैं कि सभी महलों के अपने जल निकाय या झालरे थे जो इन महलों को जीवंत बनाते थे क्योंकि ये जल निकाय गर्मी के मौसम में पानी के प्राथमिक स्रोत थे। प्रस्तुत चित्र में दाहिनी ओर सूरसागर महल और उसका तालाब देख सकते हैं जिसे सूरसागर तालाब कहा जाता है। १६६४ में महाराजा सूर सिंह द्वारा यहाँ महल और तालाब का निर्माण किया गया था । इस पेंटिंग में कलाकार द्वारा चित्रित संगमरमर का सूरसागर महल और चार बाग का एक आनंदमयी दृश्य है। ये जल निकाय न केवल अपने निवासियों को पानी प्रदान करते हैं बल्कि पक्षियों और विभिन्न प्रकार के जलीय जीवन के लिए भी आश्रय प्रदान करते हैं। जीवन से भरपूर ये जल निकाय रेगिस्तान की गर्मी में शीतल शरणस्थली थे।

"दल बदली रो...”

प्रस्तुत लोक गीत अज्ञात मूल का है जिसे इरफ़ान ख़ान (गायन), अनीश ख़ान (गायन), इंसाफ़ ख़ान (गायन), रहीश ख़ान (गायन), सादिक ख़ान (ढोलक) और इकलास ख़ान (सिंधी सारंगी) ने प्रस्तुत किया है। गीत की शुरुआत एक दोहे से होती है जिसमे गीत की नायिका को अपने प्रेमी के विरह में जल-बिन मछली की तरह तड़पता हुआ दिखाया गया है । फिर गीत एक दृश्य के साथ आगे बढ़ता है जहाँ महिलाएं सहेलियों के साथ पानी भरने के लिए जा रही हैं और अपने घड़े, उसकी धातु और संबंधित शिल्प का वर्णन करती हैं; जो राजस्थान की लोक संगीत परंपरा में एक और महत्वपूर्ण विषय है । इस लोकप्रिय गीत में कुएं, बावड़ी और तलाव जैसी विभिन्न जल संरचनाओं का उल्लेख है।.

नागौर में, महाराजा बखत सिंह नाव का लुत्फ उठाते हुए

सन १७४५-४८ | यहां "नागौर मास्टर" के सौजन्य से | © मेहरानगढ़ संग्रहालय ट्रस्ट

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अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, महाराजा बखत सिंह (१७२४-५१) ने नागौर के किले अहिछत्रगढ़ का पुनर्विकास किया, हरे-भरे बगीचों के बीच अपने मंडप स्थापित किए, कम बारिश की भूमि में स्नान और नौका विहार के लिए विशाल पानी की टंकियों का निर्माण किया। किले में पानी की व्यवस्था बगीचों के साथ संयोजित है ताकि वास्तुकला के साथ प्राकृतिक परिदृश्य को अनुकूलित और प्रासंगिक बनाया जा सके। इस महल को एक उप-महल अथवा आरामगाह और दिल्ली-जोधपुर के बीच एक पढ़ाव की तरह बनाया गया था जो खुले, पानी से भरे भरे स्थानों के कारण रेगिस्तान में नख़लिस्तान की तरह समृद्ध है और जिसमे अस्थायी शिविर के डिज़ाइन सम्बन्धी सन्दर्भ हैं। महल में कई खुले हरे-भरे स्थानों की कल्पना की गयी थी जो तत्कालीन मिनिएचर पेंटिंग्स द्वारा प्रमाणित हैं। कल्पना की जा सकती है कि रेगिस्तान और गर्म पत्थरों की कठोरता झिलमिलाते पानी, वनस्पतियों की हरीतिमा और पक्षियों की चहचहाट से कम हो गयी हो।

१७४७ में पूरे राजपूताना और पश्चिमी भारत में एक अभूतपूर्व भीषण अकाल पड़ा। जैसा कि एक मराठा पर्यवेक्षक ने लिखा, "ऐसा लगता है कि पुरुषों को अपना चेहरा धोने के लिए भी पानी नहीं मिल सकेगा". इस दिल दहला देने वाले विवरण के विपरीत, पेंटिंग एक बहुत ही अलग वातावरण का सुझाव देती है: जैसे एक गर्म दिन के उत्पीड़न से राहत। हरियाली और कई नावों को समा लेने वाला जलाशय जो महल के चारो ओर फैला है पश्चिमी रेगिस्तानी क्षेत्र से बहुत अलग एक स्वर्ग दिखाता है। पेंटिंग में, राजा और महिला संगीतकारों से लदी एक बड़ी नाव और महिलाओं के जोड़े से भरी चार छोटी नावें कमल से भरे पानी पर तैरती है। पानी को चांदी जैसा दृश्य देने के लिए कलाकार द्वारा टिन की एक मिश्र धातु का उपयोग किया गया है। प्रत्येक नाव में एक विशिष्ट आकर्षक अग्रभाग है जिनमे से दो अश्वमुख हैं, दो मकर हैं और एक गजमुख है। मानो राजा के जहाज के अग्रनाविक।

जलाशय के एक किनारे पर गतिविधियों को देखने के लिए महल था और बाकी किनारों पर बुर्ज - ये सभी इस छोटी झील की सुरक्षा के लिए डिज़ाइन किए गए थे।